Tipu Sultan का इतिहास और मराठा, निज़ाम एवं ब्रिटिश सेना की धोखा.
भारत के इतिहास में टीपू सुल्तान एक बहादुर योद्धा और कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष, युद्ध और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विरोध का प्रतीक है. लेकिन, इस संघर्ष में मराठा और निज़ाम ने उनका साथ देने के बजाय अंग्रेजों का समर्थन किया, जिसके कारण भारत में ब्रिटिश सत्ता को मजबूती मिली।
और फिर वह ब्रिटिश सत्ता जिसने भारत पर हिंदुओं पर सनातनों पर दलितों मुस्लिमो पर बहुत ज्यादा अत्याचार किया. इस लेख में हम टीपू सुल्तान के इतिहास, मराठा और निज़ाम के विरोध के कारणों और ब्रिटिश रणनीति पर विस्तृत चर्चा करेंगे.
आगे चर्चा करने से पहले आप एक बात जरूर जन कि पहले का दौर लोकतांत्रिक नहीं इसलिए जितनी भी जंग हुई है राजाओं के बीच में वह सत्ता और राज्यो को लेकर हुई है धर्म को लेकर कभी नहीं हुई.(भ्रमित न हो )
टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान फ़तेह अली साहब टीपू (Sultan Fateh Ali Sahab Tipu) था। उन्हें आमतौर पर टीपू सुल्तान या शेर-ए-मैसूर (Mysore का शेर) के नाम से जाना जाता है।
1. टीपू सुल्तान का इतिहास
टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1751 को मैसूर के शासक हैदर अली के घर हुआ था। उन्होंने अपने पिता के शासनकाल में ही सैन्य और प्रशासनिक कौशल सीख लिया था। 1782 में, हैदर अली की मृत्यु के बाद, टीपू सुल्तान मैसूर के राजा बने और उन्होंने आधुनिक हथियारों से लैस एक मजबूत सेना बनाई। उन्होंने कई सुधार किए, जिसमें कर प्रणाली, सैन्य संगठन और व्यापार को बढ़ावा देना शामिल था।
टीपू सुल्तान के प्रमुख युद्ध
1. पहला एंग्लो-मैसूर युद्ध (1767-1769): जब भारत में अंग्रेज आ चुके थे और अंग्रेजों ने भारत के मैसूर पर कब्जा करना चाहा तो उस समय एक मुस्लिम शासक जिनका नाम हैदर अली था उन्होंने अंग्रेजों को हराया।
2. दूसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1780-1784): टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली की मृत्यु के बाद दूसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध में भी टीपू ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी और 1784 में मंगलौर संधि पर हस्ताक्षर हुए।
3. तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1790-1792): इस युद्ध में अंग्रेजों, मराठों और निज़ाम की संयुक्त सेना से हारने के बाद, टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों को देना पड़ा। टीपू सुल्तान यह युद्ध इसलिए हर गए क्योंकि इसमें भारत के ही लोग जो मराठा और निजाम राज्य के थे उन्होंने सत्ता के लालच या खोए हुए राज्यों को वापस पानी के चक्कर में अंग्रेजों की बातों में आकर टीपू सुल्तान को हराने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया. लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इन दोनों को भी धोखा दिया.
4. चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799): इस युद्ध में अंग्रेजों ने मराठों और निज़ाम की मदद से श्रीरंगपट्टनम पर हमला किया और टीपू सुल्तान को वीरगति प्राप्त हुई। टीपू सुल्तान अपने मैसूर राज्य की रक्षा करते हुए शहीद हो गए और उनके मौत का कारण मराठा और निजाम के सर जाता है.
मराठाओं के वह कौन से राजा थे जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया – अंग्रेजों के साथ देने वाले राजा
2. मराठों ने टीपू सुल्तान का विरोध क्यों किया?
मराठा साम्राज्य और मैसूर राज्य के बीच आपसी संघर्ष पहले से ही चला आ रहा था। इसके कई कारण थे:
1. भू-क्षेत्रीय टकराव:
मराठे कर्नाटक और दक्षिणी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे, लेकिन टीपू सुल्तान उनके विस्तार में बाधा थे। मराठा चाहते थे कि वह टीपू सुल्तान के राज्य में अपना विस्तार करें लेकिन टीपू सुल्तान के होते हुए यह कभी नहीं हो सकता था.
मराठाओं ने जब इसकी पहल की तब क्रोध में आकर टीपू सुल्तान ने मराठाओं के कई राज्य जीत थे, जिनमें धारवाड़ और कोंकण क्षेत्र शामिल थे।
2. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
मराठा शासक नाना फड़नवीस नहीं चाहते थे कि दक्षिण भारत में टीपू सुल्तान जैसा शक्तिशाली शासक बने।
उन्होंने टीपू को एक कट्टर शासक के रूप में देखा, और फिर उन्होंने मंदिरों को तोड़ने और धर्मांतरण कराने की एक अफवाह फैलाई. मराठाओं की इतिहास की बुक में आपको मंदिर तोड़ने और धर्ममंतरण करने की बात मिल जाती है लेकिन वही आप किसी उर्दू हिस्ट्री में जाकर देखेंगे तो वहां पर मंदिरों को संरक्षण देने की बात की जाती है.
3. अंग्रेजों के साथ संधि:
मराठों को लगा कि अंग्रेजों के साथ मिलकर टीपू को हराना उनके लिए फायदेमंद रहेगा। उन्होंने 1790 में अंग्रेजों और निज़ाम के साथ गठबंधन कर लिया और टीपू के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अंततः टीपू सुल्तान को हराकर और उनको वीरगति प्राप्त कर कर अंग्रेजों ने मराठाओं और निजाम को भी धोखा दिया और उनके शासन को भी सीमित कर दिया.
नोट : इसे कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी सत्ता की लालच में गद्दारी कर बैठे
3. निज़ाम ने टीपू सुल्तान का विरोध क्यों किया?
हैदराबाद के निज़ाम भी टीपू के खिलाफ थे और उन्होंने अंग्रेजों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण थे:
- निज़ाम और मराठों का संघर्ष:
- निज़ाम और मराठों के बीच दशकों से संघर्ष चल रहा था।
- टीपू अगर मजबूत होते, तो निज़ाम की सत्ता को खतरा हो सकता था।
2. अंग्रेजों के साथ गठबंधन:
निज़ाम ने अंग्रेजों के साथ Subsidiary Alliance (सहायक संधि) की थी, जिससे वे अंग्रेजों के भरोसे पर थे। वे अंग्रेजों की सहायता से अपनी सत्ता बचाना चाहते थे।
3. टीपू की बढ़ती शक्ति से भय:
निज़ाम को डर था कि टीपू अगर अंग्रेजों को हरा देते हैं, तो अगला हमला उनके राज्य पर हो सकता है। इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के साथ मिलकर टीपू का विरोध किया।
4. कैसे अंग्रेजों ने मराठों और निज़ाम को धोखा दिया?
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की कूटनीति का मुख्य उद्देश्य भारत में अपनी सत्ता को मजबूत करना था। उन्होंने मराठों और निज़ाम को टीपू सुल्तान के खिलाफ इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में उन्हीं को कमजोर कर दिया।
1. मराठों को धोखा:
अंग्रेजों ने मराठों के साथ संधि की और टीपू को हराने के लिए उनका इस्तेमाल किया। लेकिन 1802 में अंग्रेजों ने बेसिन की संधि करके पेशवा बाजीराव द्वितीय को अपने नियंत्रण में ले लिया।1818 में, उन्होंने पूरे मराठा साम्राज्य को खत्म कर दिया।
नोट : (यहां पर पूरे मराठा साम्राज्य को खत्म करने का श्रेय अंग्रेज को जाता है तो छाव जैसी मूवी दिखाकर आपको अंग्रेजों के खिलाफ न भड़का के एक कम्युनिटी के खिलाफ बढ़ाया जाता है )
2. निज़ाम को धोखा:
अंग्रेजों ने निज़ाम को सुरक्षा देने का वादा किया था, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सत्ता को सीमित कर दिया। 1948 तक निज़ाम ब्रिटिश नियंत्रण में ही रहे और अंततः भारतीय गणराज्य में उनका विलय हो गया।
Conclusion ( निष्कर्ष )
1. अगर मराठा और निज़ाम टीपू सुल्तान का साथ देते, तो अंग्रेजों को भारत में कभी जीत नहीं मिलती।
2. अंग्रेजों की “Divide and Rule” नीति ने भारतीय शासकों को आपस में लड़वा दिया, जिससे वे कमजोर हो गए।
3. अगर मराठा, निज़ाम और टीपू एकजुट होते, तो भारत को अंग्रेजों के अधीन नहीं होना पड़ता।
मेरा विचार
टीपू सुल्तान बहादुर योद्धा थे, लेकिन उनकी रणनीति में एक बड़ी कमी थी – वे मराठों और निज़ाम को अपने पक्ष में नहीं कर सके।
अगर मराठा और निज़ाम अंग्रेजों के बजाय टीपू के साथ होते, तो भारत में ब्रिटिश शासन की नींव ही नहीं पड़ती।
अंग्रेजों ने भारतीयों को आपस में लड़ाकर उन्हें कमजोर कर दिया और पूरे देश पर कब्जा कर लिया।
नोट : आज के समय में हमें इतिहास से सीख लेकर आपसी एकता बनाए रखनी चाहिए, ताकि कोई बाहरी शक्ति हमारे देश को कमजोर न कर सके। मौजूदा राजनीति हिंदू मुस्लिम में बाट रही है और एक दिन फिर भारत पर अंग्रेजी शासन होगा.