भारत पर कुल कर्ज: अब तक कितना और कब-कब कितना बढ़ा ?
भारत एक विकासशील देश है और विकास की गति को बनाए रखने के लिए सरकारें समय-समय पर देशी और विदेशी स्रोतों से कर्ज लेती रही हैं। लेकिन जब यह कर्ज सीमा पार करने लगे, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
2024 तक भारत पर कुल कर्ज कितना है?
वित्त मंत्रालय और आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार,
मार्च 2024 तक भारत पर कुल कर्ज लगभग 177 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो चुका है। यह देश की GDP का लगभग 81% है।
प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के दौरान भारत पर कर्ज (अनुमानित आंकड़े):
(ध्यान दें: ये आंकड़े सरकारी बजट, RBI रिपोर्ट्स और आर्थिक सर्वेक्षणों पर आधारित अनुमान हैं।)
प्रधानमंत्री | कार्यकाल | अनुमानित कर्ज (₹) | |
---|---|---|---|
जवाहरलाल नेहरू | 1947–1964 | 1,800 करोड़ | |
इंदिरा गांधी | 1966–1984 | 15,000 करोड़ | |
राजीव गांधी | 1984–1989 | 50,000 करोड़ | |
नरसिंह राव | 1991–1996 | 2 लाख करोड़ | |
अटल बिहारी वाजपेयी | 1998–2004 | 12 लाख करोड़ | |
मनमोहन सिंह | 2004–2014 | 55 लाख करोड़ | |
नरेंद्र मोदी | 2014–2024 | 177 लाख करोड़+ |
कर्ज क्यों बढ़ता है?
- बड़ी योजनाओं के लिए खर्च: जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर, सब्सिडी, स्वास्थ्य सेवाएं आदि।
- राजस्व में कमी: अगर सरकार को टैक्स या अन्य स्रोतों से कम पैसा मिलता है।
- अर्थव्यवस्था में मंदी: GDP गिरने से कर्ज का अनुपात बढ़ता है।
- आपातकालीन स्थितियां: जैसे कोविड-19 महामारी, जिसमें सरकार को भारी खर्च करना पड़ा।
जागरूकता क्यों जरूरी है?
- कर्ज का बोझ आम जनता पर: जब देश पर कर्ज बढ़ता है, तो उसका असर टैक्स, महंगाई और सार्वजनिक सुविधाओं पर पड़ता है।
- अगली पीढ़ी पर असर: ज्यादा कर्ज भविष्य की सरकारों को सीमित कर देता है।
- सस्टेनेबल विकास जरूरी: हमें ऐसी नीतियां चाहिए जो बिना ज्यादा कर्ज लिए विकास कर सकें।
हम क्या कर सकते हैं?
- राजनीतिक जवाबदेही मांगें: नेताओं से पूछें कि वे कर्ज क्यों ले रहे हैं और उसका उपयोग कहां कर रहे हैं।
- समझदारी से वोट दें: सिर्फ मुफ्त योजनाओं के लालच में न आएं, देश की अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दें।
- टैक्स व्यवस्था में सहयोग करें: सही टैक्स देकर देश के विकास में भाग लें।
- वित्तीय शिक्षा को अपनाएं: खुद भी वित्तीय जानकारी बढ़ाएं और दूसरों को भी जागरूक करें।
निष्कर्ष:
भारत पर बढ़ते कर्ज की कहानी केवल सरकारों की नीतियों की नहीं, बल्कि हम सभी नागरिकों की जिम्मेदारी की भी है।
हमें एक जागरूक, आर्थिक रूप से समझदार और जिम्मेदार नागरिक बनकर देश को कर्ज के दलदल से निकालने में योगदान देना चाहिए।
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